Thursday, August 21, 2008

निर्मला विद्या

निर्मला विद्या
निर्मला विद्या के प्रकाश से दूर, मन के अंधकार हो जाते हैं। अदृष्य आकार हो जाते, सब निराकार हो जाते हैं॥१॥

ढह जाते किले अंधविश्वास के,अर्थहीन कर्मकाँड हो जाते हैं। ढोंग छद्म छल-कपट आडंबर, खँड-खंड सब पाखंड हो जाते हैं॥२॥

आत्मसाक्षात्कार के प्रभाव से,भंडे-चमत्कार फूट जाते हैं। सम्मोहन जादू टोने-टोटके, लोटते जमीं पर नजर आते हैं॥३॥

हस्तरेखा, ज्योतिष बेकार,शुभाशुभ विचार हो जाते हैं। दूर दकियानूसीपन हो जाते, चूर अहंकार हो जाते हैं॥४॥

झूठे ढोल पीटने वाले, आवाक् देखते रह जाते हैं। बिखर जाते अद्भुत आलाप सब, धूमिल चमत्कार हो जाते हैं॥५॥

पीछे रह जाती परंपरायें,संस्कार छूट जाते हैं। दिव्य-चेतना की जागृति से, भव-चक्र टूट जाते हैं॥६॥

निर्विचारिता के प्रवाह में, गट्ठर-विचार खुल जाते हैं। प्रकाश के सागर में, ढे़ले-अंधकार घुल जाते हैं॥७॥

हैरत-अंगेज कारनामों के,उद्घाटित रहस्य-गुप्त हो जाते हैं। भुवन-भास्कर के उदय से, तारे लुप्त हो जाते हैं॥८॥

असामान्य सामान्य हो जाते,कृत्रिमता छूट जाती है। सब सहज संतुलित हो जाता है, जब निर्मला विद्या आती है॥९।।

धन्य-धन्य सहजयोग, धन्य-धन्य निर्मला माता हैं। वर्णन विभूतियों का करके हे माँ!, आनन्द ह्रुदय न समाता है॥१०॥

2 comments:

Pankaj Sharma said...

thankx poonam di
for giving such a nice platform to me where i can fully express.

May Maa bless u .


(shared by a sahaji)

Poonam :) said...

so sweet bhaiya!! :)

I can see that u r putting all ur efforts to make this blog wonderful!

Mat Shri Maa bless u always.. :)

Our Divine Mother..!